बड़े साधुसंघों का उपसंघों में विभाजन समय की आवश्यकता

सम्पूर्ण भारत मे जैन समाज की जनसंख्या  बहुत कम रह गई  है और आज कुल जैन साधु- संतों की संख्या देखे तो 1500  के आसपास  ही होगी।आज सम्पूर्ण भारत वैश्विक महामारी कोरोना  की चपेट में चल रहा है। ऐसी विषम  परिस्तिथियों  में एक बात पर बहुत गंभीरता से विचार करना पड़ेगा कि जितने भी बड़े-बड़े साधु- संतों के संघ है यदि वे सभी उप संघ जिसमें तीन या चार संत हो बना दे  तो बहुत अच्छा रहेगा ।  जगह जगह धर्म प्रभावना भी होगी और उनकी आहार विहार  व्यवस्था भी बहुत अच्छे से  होगी। समय के अनुकूल ही चलना पड़ेगा । एक ओर विचार मेरे अंतर्मन में आ रहा है कि  सभी संत साधुगण शौच क्रिया के लिए जंगल जाते हैं अब बड़े शहरों में इसकी व्यवस्था करने में बहुत  परेशानी आती है। अब 2020 में जितने भी जहां भी पावन वर्षायोग  हो वहाँ के समाजबंधु ,मंदिर समिति, ट्रस्ट आदि जो भी हो इस बात का विशेष ध्यान रखे कि  जो राशि पूरे वर्षायोग में  इकट्ठी हो उस राशि से एक प्लाट 25 बाय 50 का खरीद ले । उस प्लाट को  शौच वाटिका का रूप देने के लिए उसमे पेड़ पोधे  लगा दें। क्योंकि अब समय ऐसा ही विपरीत चल रहा है। हमको अपने साधु संतों की चर्या को पूर्णतः पालन करने में अपना पूर्ण सहयोग देना है। संत है तो जीवन मे बसंत है संत ही जीवन को जीवंत बनाने का मार्ग -दर्शन देते हैं। समाज को सही दिशा संत ही देते है। संत राष्ट्र की अनमोल धरोहर है। उनकी रक्षा करने का परम कर्तव्य हमारा है। मेरी भावना किसी को भी किसी तरह की आहत पहुँचाने की नही है। जो मेरे मन मे विचार आये वो लिख दिए। बस आप सब का प्यार स्नेह सदैव मिलता रहे यही मंगल भावना है।

-पारस जैन " पार्श्वमणि पत्रकार कोट (राज) 9414764980

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